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कृषि कानून वापस लिए जाने के फैसले पर क्या है बलिया के नेताओं की राय?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले का बलिया के नेताओं की प्रतिक्रिया क्या है?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार की सुबह राष्ट्र के नाम संबोधन दिया। लगभग पंद्रह मिनट तक चले प्रधानमंत्री के इस भाषण का मुख्य हिस्सा अंत के कुछ मिनटों में सुनने को मिला। अपनी सरकार को किसान हितैषी बताते हुए प्रधानमंत्री ने मोदी ने केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। बलिया जिले में इस फैसले का स्वागत किसान संगठन के नेताओं से लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं तक कर रहे हैं। साथ ही कृषि कानून को वापस लेने की वजह भी बता रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी और 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही समाजवादी पार्टी के बलिया अध्यक्ष ने इस मौके पर बलिया खबर से बात की। सपा के बलिया अध्यक्ष राजमंगल यादव ने कहा कि “भाजपा जो भी करती है चुनाव को देखकर ही करती है। देशभर के किसान लगभग साल भर से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे। किसानों की मांग जायज थी। अब जाकर प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। लेकिन इसे अब सदन में समाप्त करके अमली जामा भी पहनाना होगा।”

किसान यूनियन के बलिया अध्यक्ष जनार्दन सिंह ने इस ऐताहिसक मौके पर बलिया खबर से बातचीत में कहा कि “आखिरकार सरकार ने किसानों की कुर्बानी लेने के बाद कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कही है। देर आए दुरुस्त आए। लेकिन संसद में जब तक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ये कानून वापस नहीं लिए जाएंगे तब तक आंदोलन जारी रहेगा।” उन्होंने आगे कहा कि “सिंघू बार्डर पर किसान संगठनों की बैठक के बाद अंतिम निर्णय होगा। भले ही चुनाव के दबाव में ही सरकार ने ये फैसला लिया हो लेकिन इसका स्वागत है।”

बलिया से बहुजन समाज पार्टी के विधायक उमाशंकर सिंह ने फेसबुक पर लिखा है कि “गुरुनानक जयंती एवं कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर देश के किसानों के लिए इतनी बड़ी खुशखबरी आई है। तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के सरकार के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। लेकिन दुख इस बात का है कि ये फैसला पहले ले लिया गया होता तो इस आंदोलन में जो 700 किसान शहीद हुए हैं उन्हें बचाया जा सकता था। किसानों के बलिदान को इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा।”

उमाशंकर सिंह ने सरकार से मांग की है कि “किसानों के उपज का एमएसपी देने के लिए कानून बनाई जाए। ताकि किसानों की आय स्थिर की जा सके। क्योंकि हर बार फसल का भाव गिर जाता है जिससे किसान अपनी उपज खेत में ही छोड़ देने के लिए मजबूर हो जाता है।”

बलिया जिले में किसानों के मुद्दों पर लगातार सक्रिया रहने वाले बलवंत यादव ने कहा कि “किसानों ने कानून मांगा था और ना ही अब तक ये कानून लागू किए गए थे। कृषि कानून वापस लेने का कोई फायदा किसानों को तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि MSP लेकर कानून नहीं बन जाता। किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक MSP को लेकर सरकार कानून नहीं बनाती है तब तक आंदोलन चलता रहेगा।”

बलवंत यादव ने कहा कि “प्रधानमंत्री ने आज जो भाषण दिया उसमें साफ दिख रहा है कि वो कृषि कानूनों को गलत नहीं मान रहे हैं। बल्कि उन्हें अफसोस है कि वो किसानों के एक वर्ग को नहीं मना सके। दुनिया भर में छीछालेदर हो जाने की वजह से ये कानून वापसी का निर्णय हुआ है। यूपी चुनाव में तो अभी समय है लेकिन सरकार ने देखा है कि उनकी पार्टी के नेता किसान आंदोलन से प्रभावित क्षेत्रों में जा नहीं पा रहे हैं तो चुनाव कैसे जीतेंगे इसलिए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया गया है।”

बलिया के ही वामपंथी पार्टी के युथ विंग के अतहर ने बताया कि “कृषि कानूनों का असर किसानों के साथ मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों पर भी पड़ने वाला था। किसान आंदोलन के दबाव में सरकार ने इन काले कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण से नहीं लगता है कि उन्हें ये कानून गलत लग रहा है। क्योंकि प्रधानमंत्री तो पूंजीपतियों के हितैषी हैं। पूंजीपतियों के लिए ये कानून फायदेमंद था।”

युवा चेतना के रोहित सिंह ने बलिया खबर से बातचीत में कहा कि “बड़ी देर कर दी हूजूर आते-आते। प्रधानमंत्री को देशाटन के बाद यह एहसास हुआ कि न सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे देश और खासकर उत्तर प्रदेश में उनके पैर के नीचे से राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है। तब उन्हें जागृती हुई है। लेकिन किसानों पर जो जुल्म और अत्याचार हुआ उसका हिसाब अब कौन देगा? इस बात से यह साबित हो गया है कि किसानों की बात सत्य थी कि कहीं न कहीं मोदी सरकार अंबानी और अडानी को लाभ पहुंचाना चाहती थी।”

समाजवादी पार्टी के नेता अनिल राय ने कहा है कि “लाखों किसानों की आवाज, सैकड़ों किसानों की शहादत, देश की सभी विपक्षी पार्टियों के आक्रामक तेवर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को आज एहसास करा दिया कि वर्तमान सरकार किसान विरोधी है। आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री जी देश से माफी मांग रहे हैं मगर यूपी की जनता भाजपा को माफ करने की मूड में नही है। यूपी की जनता भाजपा को खदेड़ कर समजवादी सरकार बनाने का मन बना चुकी है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले का स्वागत करते हुए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के प्रदेश अध्यक्ष नीरज सिंह गुड्डू ने कहा कि “कृषि कानूनों को वापस लेना स्वागतयोग्य कदम है। इन कानूनों की कोई जरूरत नहीं थी। किसानों के आंदोलन के दबाव के बाद सरकार ने कानून वापसी का ऐलान किया है। मैं किसानों के संघर्ष को नमन करता हूं। साथ ही प्रधानमंत्री को इसके लिए बधाई देता हूं।”

किसान आंदोलनों मे सक्रिय छात्र नेता प्रवीण कुमार सिंह  कहते हैं “आज सिर्फ भारत का किसान ही नहीं जीता है। बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था मे लोक की महत्ता की भी जीत है। विशेष तौर पर उन युवाओं को सीख मिलेगी जो सत्ता और सुविधा को ही लोकतंत्र मानते रहे हैं। आज युवाओं मे संघर्ष और आंदोलनों के प्रति विश्वास बढ़ेगा और वो भविष्य मे लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी बनेंगे।”

गौरतलब है कि लगभग एक साल से किसान देशव्यापी आंदोलन कर रहे थे। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान शुरू से ही आरपार की लड़ाई का मन बनाए हुए बैठे थे। दिल्ली की सीमाओं पर किसान धरना कर रहे थे। केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच इसे लेकर कई दौर की बैठकें भी हुईं। लेकिन किसानों और सरकार के बीच सहमति नहीं बन सकी। अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस कानून को वापस लेने का निर्णय लिया है।

प्रधानमंत्री ने आज राष्ट्र के नाम संबोधन में इसे लेकर ऐलान किया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस कानून को किसानों के हक में बताया। कहा कि हम किसानों के एक वर्ग को नहीं समझा सके। इस फैसले की टाइमिंग ने इसे एक नया रंग दे दिया है। कुछ ही महीनों बाद पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। सियासी टिप्पणीकारों का साफ कहना है कि किसान आंदोलन भाजपा को चुनाव में नुकसान पहुंचाएगी। तो सवाल है कि क्या चुनाव को देखते हुए यह फैसला लिया गया है?

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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